थाना ईसागढ एवं साइबर सेल अशोकनगर के मार्गदर्शन में चैरिटिबल अस्पताल श्री आनंदपुर ट्रस्ट ईसागढ में अस्पताल स्टाफ एवं आमजन को साइबर अपराध के प्रति किया जागरूक"
ईसागढ़ (ऊष्मा की आवाज)
"गौर करें, पुलिस, सीबीआई, ईडी नहीं करती फोन पर डिजिटल अरेस्ट"
"क्या आपके साथ साइबर फॉड हो गया है तो तुरंत डायल करें 1930"
पुलिस महानिदेशक महोदय मध्यप्रदेश द्वारा साइबर अपराधों पर प्रभावी रोकथाम हेतु साइबर क्राइम के प्रति जागरूकता अभियान चलाये जाने के संबंध में निर्देश जारी किये गये है। इस तारतम्य में पुलिस अधीक्षक महोदय अशोकनगर श्री विनीत कुमार जैन द्वारा जिले के समस्त अनुविभागीय अधिकारी (पुलिस), समस्त थाना प्रभारियों एवं समस्त चौकी प्रभारियों को साइबर अपराधों के प्रति जागरूकता अभियान चलाये जाने के संबंध में निर्देशित किया गया।
दिनांक 18.12.2024 को पुलिस अधीक्षक महोदय अशोकनगर श्री विनीत कुमार जैन के निर्देशन
में, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्री गजेन्द्र सिंह कँवर एवं एसडीओपी महोदय चंदेरी श्री शैलेन्द्र शर्मा के मार्गदर्शन में थाना प्रभारी ईसागढ मीना रघुवंशी द्वारा सायवर अपराधों की रोकथाम व सायवर अपराधों के प्रति अस्पताल स्टाफ व आमजन को जागरूक करने के उद्देश्य से चैरिटिबल अस्पताल श्री आनंदपुर ट्रस्ट में विशेष साइबर जागरूकता सेमीनार का आयोजन किया गया।
थाना प्रभारी उप निरीक्षक मीना रघुवंशी द्वारा अस्पताल स्टाफ व आमजन को वर्तमान में प्रचलित सायबर अपराधों, उनसे बचाव एवं सोशल मीडिया का सुरक्षित उपयोग किये जाने के संबंध में विस्तृत जानकारी दी गई जो निम्न प्रकार है-
डिजिटल अरेस्टः- साइबर अपराधी पुलिस, ईडी, सीबीआइ आरबीआइ, टाई या कस्टम अधिकारी आदि बनकर फोन करते हैं और लोगों को मनी किसी गंभीर अपराध, लांड्रिग या इम्स कंसाइनमेंट जैसे आरोप में फंसे होने का दावा करते हैं। फिर सामने वाले को झांसे में लेकर अपने बताए खाते में पैसे ट्रांसफर करा लेते हैं। इसकी शुरुआत कई बार सीधे फोन काल पर लुटेरों के बात करने से या फिर इंटरेक्टिव वायस रिस्पांस (आइवीआर) काल से होती है, जैसे किसी भी बैंक या मोबाइल कंपनी आदि के कस्टमर केयर में बात करने के लिए कॉल करने पर शुरुआत आइवीआर से ही होती है। दोनों ही तरीकों से साइबर अपराधी लोगों को डर या लालच में फंसाते हैं। इसके बाद वो वीडियो काल करते हैं और सरकारी विभाग जैसे सेट में बैठा बदमाश पुलिस या कस्टम अधिकारी की यूनिफार्म में सामने आता है। उसकी धमकियों से जब पीड़ित बेबस महसूस करने लगता है या निकलने का रास्ता पूछता है तो ये रिश्वत की मांग करते हैं। खुद को फंसा मानकर पीड़ित अपनी क्षमता के अनुसार हर बात मानने को तैयार हो जाता है।